आप जानतें हे जीवन क्या और ”जीवन के उद्देश्य क्या है .!

प्र●1●आप जानतें हे जीवन क्या और ”जीवन के उद्देश्य क्या है .!

31,july,2018

◆हम आप को जीवन क्या है इस के बारें मे बताते है जब जीवन के अतिरिक्त कुछ और भी हो जीवन ही है, उसके अतिरिक्त कुछ और नहीं है हम उत्तर किसी और के संदर्भ में दे सकते थे, लेकिन कोई और है नहीं, जीवन ही जीवन है तो न तो कुछ लक्ष्य हो सकता है जीवन का, न कोई कारण हो सकता जीवन का कारण भी जीवन है और लक्ष्य भी जीवन है ऐसा समझो, तुमसे कोई पूछे -किस चीज पर ठहरे हो तुम कहो,छत पर और छत किस पर ठहरी है तो तुम कहो- दीवालों पर और दीवालें किस पर ठहरी हैं तो तुम कहो, पृथ्वी पर और पृथ्वी किसी पर ठहरी है तो तुम कहो गुरुत्वाकर्षण पर और ऐसा कोई पूछता चले , गुरुत्वाकर्षण किस पर ठहरा है तो चाद-सूरज पर और चांद-सूरज तारो पर और अंतत: पूछे कि यह सब किस पर ठहरा है तो प्रश्न तो ठीक लगता है, भाषा में ठीक जंचता है, लेकिन सब किसी पर कैसे ठहर सकेगा, सब में तो वह भी आ गया है जिस पर ठहरा है सब में तो सब आ गया बाहर कुछ बचा नहींइसको ज्ञानियो ने अति प्रश्न कहा है सब किसी पर नहीं ठहर सकता इसलिए परमात्मा को स्वयंभू कहा है अपने पर ही ठहरा है अपने पर ही ठहरा है, इसका अर्थ होता है, किसी पर नहीं ठहरा हैजीवन क्या है, तुम पूछते जीवन जीवन है क्योंकि जीवन ही सब कुछ है। मेरे लिए जीवन परमात्मा का पर्यायवाची है लेकिन प्रश्न पूछा है, जिज्ञासा उठी है, तो थोड़ी खोजबीन करें। अगर उत्तर देना ही हो, अगर उत्तर के बिना बेचैनी मालूम पड़ती हो, तो फिर जीवन को दो हिस्सों में तोड़ना पड़ेगा जिनने उत्तर दिए, उन्होंने जीवन को दो हिस्सों में तोड़ लिया। एक को कहा – यह जीवन और एक को कहा – वह जीवन यह जीवन माया, वह जीवन सत्य इस जीवन का अर्थ फिर खोजा जा सकता है इस जीवन का अर्थ है, उस जीवन को खोजना इस जीवन का प्रयोजन है – उस जीवन को पाना यह अवसर है मगर तब जीवन को बांटना पड़ा बाटो तो उत्तर मिल जाएगा मगर उत्तर थोड़ी दूर तक ही काम आएगा फिर अगर कोई पूछे कि वह जीवन क्यो है – सत्य का, मोक्ष का, ब्रह्म का, फिर बात वहीं अटक जाएगी वह जीवन बस है.!

◆ पर जब आप यह विभाजन काम का है कृत्रिम है, फिर भी काम है अपने भीतर भी तुम इन दो धाराओं को थोड़ा पृथक-पृथक करके देख सकते हो थोड़ी दूर तक सहारा मिलेगा एक तो वह है जो तुम्हें दिखायी पड़ता है, और एक वह है जो देखता है दृश्य और द्रष्टा ज्ञाता और ज्ञेय जाननेवाला और जाना जानेवाला उसमें ही जीवन को खोजना जो जाननेवाला है अधिक लोग उसमें खोजते हैं जो दृश्य है, धन में खोजते, पद में खोजते पद और धन दृश्य हैं बाहर खोजते बाहर जो भी है सब दृश्य है : उसमें खोजना जो द्रष्टा है, साक्षी है, तो तुम्हें परम जीवन की स्फुरणा मिलेगी उसी स्फुरणा में उत्तर है,मैं उत्तर नहीं दे सकूंगा कोई उत्तर कभी नहीं दिया है उत्तर है नहीं, मजबूरी है, देना चाहा है बहुतों ने कभी किसी ने कोई उत्तर नहीं दिया है और जिन्होंने उत्तर सच में देने की चेष्टा की है, उन्होंने सिर्फ इशारे बताए हैं कि तुम अपना उत्तर कैसे खोज लो उत्तर नहीं दिया, संकेत किए हैं, ऐसे चलो, तो उत्तर मिल जाएगा उत्तर बाहर नहीं है, उत्तर तुम्हारे भीतर है उत्तर है इस रूपांतरण में कि मेरी आखें बाहर न देखें, भीतर देखें मेरी आखें दृश्य को न देखें, द्रष्टा को देखें मैं अपने अंतरतम में खड़ा हो जाऊं, जहां कोई तरंग नहीं उठती; वहीं उत्तर है, क्योंकि वहीं जीवन अपनी पूरी विभा में प्रकट होता है वहीं जीवन के सारे फूल खिलते हैं वहीं जीवन का नाद है – ओंकार है
जिंदगी, सच है कि झूठ ही लगती अगर अफसाना न होती वह जो दृश्य का जगत है, एक कहानी है, जो तुमने रची और जो तुमने तुमसे ही कही एक नाटक है, जिसमे निर्देशक भी तुम, कथा-लेखक भी तुम, अभिनेता भी तुम, मंच भी तुम, मंच पर टंगे पर्दे भी तुम और दर्शक भी तुम एक सपना है, जो तुम्हारी वासनाओं में उठा और धुएं की तरह जिसने तुम्हें घेर लिया एक तो जिंदगी यह रही,दुकान की, बाजार की, पत्नी-बेटे की, आंकाक्षाओं की संसार जिसे कहा है और एक जिंदगी और भी है, वह जो भीतर बैठा देख रहा है देखता है कि जवान था, अब बूढ़ा हुआ; देखता था कि तमन्नाएं थीं, अब तमन्नाएं न रहीं; देखता था कि बहुत दौड़ा और कहीं न पहुंचा; देखता था, देखता रहा है, सब आया, सब गया, जीवन की धारा बहती रही, बहती रही, लेकिन एक है कुछ भीतर जो नहीं बहता, जो ठहरा है, जो थिर है, जो अडिग है, वह साक्षी एक जीवन वह है।
बाहर का जीवन भटकाता , भरमाता है उत्तर के आश्वासन देगा और उत्तर कभी आएगा नहीं भीतर का जीवन ही उत्तर है.!

◆पर आप बहूत पूछते हो—जीवन क्या है तुम्हें जानना होगा तुम्हें अपने भीतर चलना होगा मैं कोई उत्तर दूं; वह मेरा उत्तर होगा शांडिल्य कोई उत्तर दें, वह शांडिल्य का उत्तर होगा वह उन्होंने जाना, तुम्हारे लिए जानकारी होगी और जानकारी ज्ञान में बाधा बन जाती है जानकारी से कभी जानना नहीं निकलता उधारी से कहीं जीवन निकला है बजाय तुम बाहर उत्तर खोजो, तुम अपने को भीतर समेटो शास्त्र कहते हैं, जैसे कछुवा अपने को समेट लेता है भीतर, ऐसे तुम अपने को भीतर समेटो तुम्हारी आंख भीतर खुले, और तुम्हारे कान भीतर सुनें, और तुम्हारे नासापुट भीतर सूंघें, और तुम्हारी जीभ भीतर स्वाद ले, और तुम्हारे हाथ भीतर टटोलें, और तुम्हारी पांचों इंद्रियां अंतर्मुखी हो जाएं; जब तुम्हारी पाचों इंद्रियां भीतर की तरफ चलती हैं, केंद्र की तरफ चलती हैं, तो एक दिन वह अहोभाग्य का क्षण निश्चित आता है जब तुम रोशन हो जाते हो जब तुम्हारे भीतर रोशनी ही रोशनी होती है और ऐसी रोशनी जो फिर कभी बुझती नहीं ऐसी रोशनी जो बुझ ही नहीं सकती क्योंकि वह रोशनी किसी तेल पर निर्भर नहीं ‘ बिन बाती बिन तेल अकारण है वही जीवन का सार है वही जीवन का ‘क्या’ है.!

जीवन के उद्देश्य

एक हथौड़े पर विचार कीजिए कीलों पर प्रहार करने के लिए ही उसका खाका तैयार किया गया यही करने के लिए उसकी रचना की गई अब कल्पना कीजिए कि हथौड़े का कभी प्रयोग नहीं हुआ वह औजार बॉक्स में ही रखा रहा हथौड़े ने भी इसकी परवाह नहीं की पर अब कल्पना कीजिए कि उसी हथौड़े की अपनी एक आत्मा है, आत्मजागरूकता है। औजारबॉक्स में रहते हुए दिन बीतते जाते हैं। अंदर हथौड़े को अजीब सा महसूस होता है, पर उसे समझ में नहीं आता क्यों कुछ है जो अनुपस्थित है, पर उसे नहीं पता वह क्या है फिर एक दिन कोई उसे खींचकर औजार बॉक्स से बाहर निकालता है और उसका प्रयोग आग रखने के स्थान के लिए कुछ शाखाओं पर प्रहार करने के लिए करता है हथौड़ा खुशी से पागल हो जाता है। उसे पकड़ा गया, ताकत लगाई गई और शाखाओं पर प्रहार किया गया - हथौड़े को बहुत अच्छा लगा पर दिन के समाप्त होने पर , उसमें फिर भी असंतोष था शाखाओं पर प्रहार करने में उसे मजा आया, पर वही सबकुछ नहीं था कुछ फिर भी अनुपस्थित था बाकी जो दिन आते गए, उसमें बहुत बार उसे प्रयोग में लाया गया उसने हबकैंप का नया ढाँचा गढ़ा, चट्टान की नई परत में विस्फोट किया, एक मेज के पाए पर प्रहार करके उसे अपने स्थान पर लगाया फिर भी वह असंतुष्ट और अपूर्ण था अतः वह ज्यादा से ज्यादा कार्य करना चाहता था अपने चारों तरफ की चीजों पर प्रहार करने के लिए, उन्हें तोड़ने के लिए, विस्फोट करने के लिए, चीजों पर पैबन्द लगाने के लिए वह ज्यादा से ज्यादा प्रयोग में लाया जाना चाहता था उसे लगता था कि ये सभी घटनाएँ उसे संतुष्ट करने के लिए काफी नहीं थी उसे विश्वास था कि उन सबका ज्यादा मात्रा में होना ही उसकी संतुष्टि का कारण होगा फिर एक दिन किसी ने उसका प्रयोग कील के साथ किया अचानक, उस हथौड़े की आत्मा प्रकाशित हो गई अब उसकी समझ में आया कि वास्तव में कौन सा काम करने के लिए उसे बनाया गया है उसका मुख्य काम कीलों पर प्रहार करना था उसने अब तक जितनी भी चीजों पर प्रहार किया था वे सभी इसकी तुलना में फीकी थीं अब वह हथौड़ा जान गया था कि इतने दिनों से उसकी आत्मा क्या ढूँढ़ रही थी!

◆हमें ईश्वर की छवि में रचा गया है ताकि हम उसके साथ एक रिश्ता बना सकें उस रिश्ते में रहना ही हमारी आत्मा की संतुष्टि का एकमात्र कारण हो सकता है ईश्वर को जानने के पहले हमें कई आश्चर्यजनक अनुभव होते हैं, पर हमने उस समय तक कील पर प्रहार नही किया होता है हमारा प्रयोग किसी नेक उद्देश्य के लिए किया गया होता है, पर उसके लिए नहीं जिसके लिए हमें रचा गया है और जिससे हमें पूरी संतुष्टि और पूर्णता प्राप्त होगी,ऑगस्टाइन ने इसे संक्षेप में इस तरह कहा है, “आपने (ईश्वर) हमें अपने लिए रचा है और हमारा ह्रदय तब तक अशांत रहता है जब तक वह आपकी शरण में आराम न ले ले,परमेश्वर के साथ रिश्ता ही एकमात्र रास्ता है जो हमारी आत्मा की प्यास को बुझा सकता है। यीशु ने कहा, “ मैं जीवन की रोटी हूँ जो मेरे पास आएगा वह कभी भूखा नहीं रहेगा और जो मेरे ऊपर विश्वास करेगा वह कभी प्यासा नहीं रहेगा जब तक हम ईश्वर को नहीं जानते तब तक हम जीवन में भूखे और प्यासे रहते हैं हम सभी तरह की चीजों को “ खाने ” और “ पीने ” का प्रयास करते हैं ताकि हमारी भूख और प्यास मिट सके, पर फिर भी वह वैसी ही रहती है
हम हथौड़े की तरह हैं हमें पता नहीं चलता है कि हमारा खालीपन कैसे खत्म होगा  हमारे जीवन में संतुष्टि और पूर्णता की कमी कैसे पूरी होगी  यहाँ तक कि नाजी शिविर के बीच कोरी टेन बूम को ईश्वर पूर्ण संतुष्टि देनेवाले लगे, “ हमारी खुशी की नींव वह है जिसे हम खुद जानते हैं और जो यीशु के साथ ईश्वर में छिपी है हमें ईश्वर के प्रेम पर विश्वास रखना चाहिए - हमारी चट्टान जो कि घोर अंधकार से ज्यादा मजबूत है,
ज्यादातर जब हम ईश्वर को दूर रखते हैं और हम संतुष्टि और पूर्णता ईश्वर को छोड़कर किसी और वस्तु में खोजते हैं तब वह हमें पूरी नहीं मिलती। हम ज्यादा से ज्यादा “ खाते ” और “ पीते ” हैं और गलत सोचते हैं कि हमारी समस्या का हल “ ज्यादा ” में है पर हम कभी भी अंत में संतुष्ट नहीं हो पाते हैं हमारी सबसे बड़ी इच्छा ईश्वर को जानने में, उसके साथ रिश्ता बनाने में है क्यों  क्योंकि हमें उसी तरह बनाया गया है क्या आपने अभी तक कील पर प्रहार किया है .!

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