प्र●1●आज भी जीवंत है, ढोला मारू की प्रेम कहानी चल रही है!
28,may,2018
【ढोला मारू रा दूहा ग्यारहवीं शताब्दी मे रचित एक लोक-भाषा काव्य है मूलत >दोहों में रचित इस लोक काव्य को सत्रहवीं शताब्दी मे कुशलराय वाचक ने कुछ चौपाईयां जोड़कर विस्तार दिया इसमे राजकुमार ढोला और राजकुमारी मारू की प्रेमकथा का वर्णन है डोला-मारू' की कथा राजस्थान की अत्यन्त प्रसिद्ध लोक गाथा है इस लोकगाथा की लोकप्रियता का अनुमान निम्नलिखित दोहे से लगाया जा सकता है, जो राजस्थान में अत्यन्त प्रसिद्ध है!
"सोरठियो दूहो भलो, भलि मरवणरी बात!
"जोवन छाई धण भली, तारांछाई रात!
"ये कथा कवि कलोल द्वारा लिखी गयी!
■(सम्पूर्ण विश्व प्रतिक्षण प्रेम का अभिलाषी है यह मनुष्य की आत्मा का सबसे मधुर पेय है। इसके बिना जीवन अपूर्ण है आदि काल से मनुष्य प्रेम का संधान करता आया है यही कारण है कि धरती पर विकसित हुई समस्त सभ्यताओं में प्रेमाख्यानों की रचना हुई राजस्थानी प्रेमाख्यान विश्व साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं कथ्य, तथ्य, शिल्प विधान एवं रागात्मकता की दृष्टि से ही नहीं अपितु इतिहास, सांस्कृतिक वैशिष्ट्य एवं सामाजिक परम्पराओं की विविधता के कारण इन्हें लोक संस्कृति का कोश कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी प्राचीन एवं मध्यकालीन राजस्थानी प्रेमाख्यान, गद्य एवं पद्य के साथ-साथ चम्पू विधाओं में भी मिलते हैं जिसमें गद्य एवं पद्य दोनों का मिश्रण होता है इस कारण प्रेमाख्यान वात, वेलि, वचनिका, विगत, दवावैत आदि शैलियों में रचे गए जिन्हें सार्वजनिक रूप से गाया एवं सुनाया जाता था प्रेमाख्यानों के गायन अथवा वाचन में रसोद्रेक प्रस्तुतकर्ता के कौशल पर अधिक निर्भर करता था थार रेगिस्तान में रहने वाली लंगा जाति इन प्रेमाख्यानों का प्रमुखता से गायन करती थी प्रेमाख्यानों का आरम्भ प्रायः देवस्तुतियों के साथ होता था जिनमें सरस्वती एवं गणेश प्रमुख होते थे इसके बाद कथा का स्थापना पक्ष होता था जिसमें कथानक के नायक एवं नायिका का परिचय भी सम्मिलित रहता था कथानक के आगे बढ़ने पर प्रसंग के अनुसार स्वर के आरोह अवरोह बदलते थे जब प्रसंग वीर रस से ओत-प्रोत होता था तो वाणी में ओज तथा गति बढ़ जाती थी जबकि करुण रस के प्रसंग में कथावाचक अथवा गायक अपनी वाणी को भी करुण शब्दों के उपयुक्त बना लेता था राजस्थान के कुछ प्रसिद्ध प्रेमाख्यानों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार से है!)
◆वे प्रेम कहानियां ही हैं, जो न केवल इस शब्द और एहसास के आकर्षण को बढ़ाती हैं, बल्कि प्रेम के अस्तित्व को सदियों तक जिंदा रखकर, हर जुबान पर इसका मीठा स्वाद बनाए रखती हैं। ऐसी कई प्रेमकहानियां हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों की मिट्टी में सिर्फ सुगंध सी उड़ती हैं, इन्हें आप तभी जान पाते हैं जब उस मिट्टी पर आपके कदम पहुंचते हैं ऐसी ही एक प्रेम कहानी है, राजस्थान के ढोला मारू की गाई जाने वाली प्रेम-कहानी !
◆इस कहानी के अनुसार नरवर के राजा नल के पुत्र साल्हकुमार का विवाह महज 3 साल की उम्र में बीकानेर स्थित पूंगल क्षेत्र के पंवार राजा पिंगल की पुत्री से हुआ चूंकि यह बाल-विवाह था, अत: गौना नहीं हुआ था जब राजकुमार वयस्क हुआ तो उसकी दूसरी शादी कर दी गई, परंतु राजकुमारी को गौने का इंतजार था बड़ी होकर वह राजकुमारी अत्यंत सुंदर और आकर्षक दिखाई देती थी!
◆ राजा पिंगल ने दुल्हन को लिवाने के लिए नरवर तक कई संदेश भेजे लेकिन राजकुमार की दूसरी पत्नी उस देश से आने वाले हर संदेश वाहक की हत्या करवा देती थी राजकुमार अपने बचपन की शादी को भूल चुके थे लेकिन दूसरी रानी इस बात का जानती थी उसे डर था कि राजकुमार को सब याद आते ही वे दूसरी रानी को छोड़कर चले जाएंगे, क्योंकि पहली रानी बेहद खूबसूरत थी!
◆पहली रान इस बात से अंजान, राजकुमार को याद किया करती थी उसकी इस दशा को देख पिता ने इस बार एक चतुर ढोली को नरवर भेजा जब ढोली नरवर के लिए रवाना हो रहा था, तब राजकुमारी ने उसे अपने पास बुलाकर मारू राग में दोहे बनाकर दिए और समझाया कि कैसे उसके प्रियतम के सम्मुख जाकर गाकर सुनाना है!
◆चतुर ढोली एक याचक बनकर नरवर के महल पहुंचा रात में रिमझिम बारिश के साथ उसने ऊंची आवाज में ने मल्हार राग में गाना शुरू किया मल्हार राग का मधुर संगीत राजकुमार के कानों में गूंजने लगा ढोली ने गाते हुए साफ शब्दों में राजकुमारी का संदेश सुनाया गीत में जैसे ही राजकुमार ने राजकुमारी का नाम सुना, उसे अपनी पहली शादी याद आ गई ढोली ने बताया कि उसकी राजकुमारी कितनी खूबसूरत है औरवियोग में है!
◆ढोली के अनुसार राजकुमारी के चेहरे की चमक सूर्य के प्रकाश की तरह है, झीणे कपड़ों में से शरीर ऐसे चमकता है मानो स्वर्ण झांक रहा हो हाथी जैसी चाल, हीरों जैसे दांत, मूंग सरीखे होंठ है बहुत से गुणों वाली, क्षमाशील, नम्र व कोमल है, गंगा के पानी जैसी गोरी है, उसका मन और तन श्रेष्ठ है लेकिन उसका साजन तो जैसे उसे भूल ही गया है और लेने नहीं आता!
◆सुबह राजकुमार ने उसे बुलाकर पूछा तो उसने राजकुमारी का पूरा संदेशा सुनाया आखिर साल्हकुमार ने अपनी पहली पत्नी को लाने का निश्चय किया पर उसकी दूसरी पत्नी मालवणी ने उसे रोक दिया। उसने कई बहाने बनाए पर मालवणी हर बार उसे किसी तरह रोक देती!
◆आखिरकार एक दिन राजकुमार एक बहुत तेज चलने वाले ऊंट पर सवार होकर अपनी प्रियतमा को लेने पूंगल पहुंच गया राजकुमारी अपने प्रियतम से मिलकर खुशी से झूम उठी दोनों ने पूंगल में कई दिन बिताए एक दिन जब दोनों ने नरवर जाने के लिए राजा पिंगल से विदा ली तब जाते समय रास्ते के रेगिस्तान में राजकुमारी को सांप ने काट लिया पर शिव पार्वती ने आकर उसको जीवन दान दे दिया!
◆लेकिन इसके बाद उनका सामना उमरा-सुमरा सें हुआ जो साल्हकुमार को मारकर राजकुमारी को हासिल करना चाहता था वह उसके रास्ते में जाजम बिछाकर महफिल सजाकर बैठ गया राजकुमार सल्हाकुमार अपनी खूबसूरत पत्नी को लेकर जब उधर से गुजरा तो उमर ने उससे मनुहार की और उसे रोक लिया राजकुमार ने राजकुमारी को ऊंट पर बैठे रहने दिया और खुद उमर के साथ अमल की मनुहार लेने बैठ गया इधर, ढोली गा रहा था और राजकुमार व उमर अफीम की मनुहार ले रहे थे मारू के देश से आया ढोली बहुत चतुर था, उसे उमर सुमरा के षड्यंत्र का ज्ञान आभास हो गया था ढोली ने चुपके से इस षड्यंत्र के बारे में राजकुमारी को बता दिया!
◆राजकुमारी भी रेगिस्तान की बेटी थी, उसने ऊंट को एड़ी मारी जिससे ऊंट भागने लगा ऊंट को रोकने के लिए राजकुमार दौड़ने लगा, जैसे ही राजकुमार पास आया, मारूवणी ने कहा >धोखा है जल्दी ऊंट पर चढ़ो, ये तुम्हें मारना चाहते हैं इसके बाद दोनों ने वहां से भागकर नरवर पहुंचकर ही दम लिया यहां राजकुमारी का स्वागत सत्कार किया गया और वह,वहां की रानी बनकर राज करने लगी इतिहास में इस प्रेमी जोड़े को ढोला मारू के नाम से जाना जाता है तब से आज तक उनके नाम व प्रेम का गुणगान किया जाता है!
1>【सेणी वीजानंद】
◆इस प्रेमाख्यान के अनुसार कच्छ के भाघड़ी गाँव का चारण वीजानंद अच्छा गवैया था तथा गायें चराता था एक बार उसने बेकरे गाँव की सेणी को देख लिया उसने सेणी से विवाह का प्रस्ताव रखा किंतु सेणी ने एक शर्त पूरी करने को कहा वीजानंद उस शर्त को पूरा करने के लिये घर से निकल पड़ा किंतु वह छः माह की निर्धारित अवधि में लौट कर नहीं आया इस पर सेणी ने हिमालय पर जाकर अपना शरीर गला लिया वीजानंद लौट कर आया तो उसे सारी बात का पता चला वह भी हिमालय पर चला गया और अपना शरीर गला लिया इस कथा में सेणी के बारे में एक दोहा कहा जाता है!
2>【सोरठ वींजा】
◆इस प्रेमाख्यान के अनुसार सांचोर के राजा जयचंद के यहाँ मूल नक्षत्र में एक कन्या का जन्म हुआ राजा ने पुत्री को अपने लिये अशुभ जानकर पेटी में बंद करके नदी में फैंक दिया यह पेटी चांपाकुमार को मिली जिसने कन्या का नाम सोरठ रखा तथा उसे पालकर बड़ा किया समय पाकर कन्या अत्यंत रूपवती युवती में बदल गयी पाटण के राजा सिद्धराज तथा गिरनार के राव खंगार दोनों ने उससे विवाह करना चाहा चांपाकुमार ने घबराकर सोरठ का विवाह एक बणजारे के साथ कर दिया खंगार ने बणजारे को मार डाला और सोरठ को अपने घर ले गया वहाँ खंगार के भाणजे वींजा को सोरठ से प्रेम हो गया वींजा ने गुजरात के बादशाह से मिलकर खंगार पर आक्रमण किया जिसमें खंगार मारा गया किंतु सोरठ वींजा के हाथ नहीं आयी बादशाह सोरठ को पकड़ कर ले गया और उसे अपने हरम में डाल लिया वींजा ने दुखी होकर प्राण त्याग दिये सोरठ भी बादशाह के हरम से निकल भागी और शमशान में वींजा की राख पर चिता सजाकर भस्म हो गयी ‘सोरठ वींजा रा दूहा’ नाम से डिंगल भाषा में एक ग्रंथ मिलता है चंद्रकुंवरी री वात कवि प्रतापसिंह ने ई.1765 में इस डिंगल गं्रथ को लिखा इसमें अमरावती के राजकुमार तथा वहाँ के सेठ की पुत्री चंद्रकुंवरी की प्रेम गाथा लिखी गयी है!
3>【चंदन मलयागिरि की वात】
◆भद्रसेन ने ई. 1740 में इस प्रेमाख्यान की रचना की इसमें चंदन और मलयगिरि के प्रेम की गाथा कही गयी है इनके अतिरिक्त सोरठी गाथा, जलाल बूबना की कथा, ऊमा>सांखली और अचलदास की कथा, काछबो तथा बाघो>भारमली आदि के प्रेमाख्यान भी गाये जाते थे अधिकतर प्रेमाख्यानों के एक से अधिक रूप प्राप्त होते हैं जलाल बूबना की कथा का यह दोहा अत्यंत मार्मिक है!
●मैं मन दीन्हों तोय, नेणा जिन दिन देखिया!
●सुधि क्यों रही न मोय, प्रेम लाज अब राखिया!
◆लेखनकला का विकास होने पर इन आख्यानों को लिपिबद्ध कर दिया गया कुछ प्रतियों में तो अत्यंत सुंदर चित्र भी बने हुए मिलते हैं जो राजस्थानी चित्रकला की अमूल्य धरोहर हैं परवर्ती काल में कुछ प्रेमाख्यानों को परकीया प्रेम तथा अश्लील वर्णन से दूषित कर दिया गया किंतु अधिकांश प्रेमाख्यान आदर्श प्रेम का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं वर्तमान काल में मनोरंजन के नवीन साधनों के आ जाने के कारण राजस्थानी प्रेमाख्यान लोक-जिह्वा से हटकर केवल पुस्तकों में सिमट कर रह गए हैं परवर्ती काल में इन प्रेमाख्यानों को आधार बनाकर कुछ ऐसे ख्यालों की रचना भी हुई जिनमें इनकी मूल कथाओं को विकृत कर दिया गया इस कारण भी जन-सामान्य को इनसे अरुचि हो गई!
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