ईमानदारी और सच्चाई से प्रशंसा करें.।

मनोवैज्ञानिक विलियम जेम्स का कहना है इंसान की सबसे गहरी इच्छाओं में से एक है प्रशासन पाने की इच्छा गैरजरूरी या अनचाहा मसु सोने का भाव तकलीफ हो सकता है जरूरी नहीं है कि कीमती जेवरात सस्ते उपहार हो सकता है कई बार यह सिर्फ कमियों को ढूंढने के लिए माफी मांगने का एक जरिया हो कई बार लोगों के लिए पूरा समय ना दे पाने की वजह से उपहारों से हम उस कमी को पूरा करने की कोशिश करते हैं असली उपहार तो वही है जब इंसान अपने आप को बांट सके सच्ची तारीफ करना उन सबसे बड़े उपहार उसमें से जो हम किसी को दे सकते हैं इससे दूसरा व्यक्ति खुद को महत्वपूर्ण समझता है खुद को महत्वपूर्ण समझने की इच्छा ज्यादातर लोगों में गहरी होती है यह इंसान के लिए एक बड़ी देर ना हो सकती है आज के दौर की सबसे बड़ी बीमारी कौन या तपेदिक नहीं है बल्कि अपने को गैरजरूरी महसूस करने का भाव तारीख को असरदार और प्रभावशाली बनाने के लिए इसमें इस तरह की कुछ बातों का होना जरूरी है यह साफ और स्पष्ट होनी चाहिए अगर मैं किसी को यह कह कर चल देता हूं कि उसने अच्छा काम किया है तो वह मैंने क्या सोचेगा वह सोचेगा मैंने क्या अच्छा किया हुआ कुछ समझ नहीं पाएगा मगर जब मैं यह कहता हूं तुम ने जिस तरह उसका रियल और ना कुछ ग्रहों को समझाया वह बहुत अच्छा काम था यह तुरंत होनी चाहिए किसी का अच्छा काम करने पर यदि हम उसकी तारीफ 6 महीने बाद करें तो उस तारीख का सर बेकार हो जाएं यह सच्ची और हार्दिक होनी चाहिए यह दिल से निकलती चाहिए आपके हर शब्द में ईमानदारी झलक नहीं चाहिए बस आशा और चापलूसी करने में क्या फर्क है स्वर्ग सच्चाई का है एक दिल से होती है दूसरी जुबान से एक में स्वार्थ छिपा होता है दूसरे में असलियत घटिया लोगों के लिए चापलूसी करना इमानदारी से तारीफ करने से ज्यादा आसमां या आसान है ना तो चापलूसी करें और ना चापलूसों की बातों में आए स्कूलों में एक पुरानी कहावत है की चापलूसी मूर्ख को खुराक होती है की चापलूसी फिर भी कभी-कभी तुम बुद्धिमान लोग इसे थोड़ा सा खाने के लिए भूखे हो जाते हैं प्रशंसा करने के बाद आपको उसकी रसीद या स्वीकृति प्राप्त करने की जरूरत नहीं है कुछ लोग बदले में पैसा पाने की उम्मीद रखते हुए वहीं खड़े रहते हैं बस ऐसा करने का उद्देश्य नहीं होना चाहिए किसी एक की प्रशंसा करने का यह मतलब नहीं कि दूसरे की निंदा की जा रही है लेकिन यह आम बात है कि कमजोर स्वाभिमान वाले लोग दूसरे की भाषा को अपनी निंदा समझ लेते हैं और खुद को कृष्ण और छोटा मान लेते हैं अगर आपकी कोई तारीफ करें तो धन्यवाद करते हुए विनम्रता पूर्वक स्वीकार कीजिए झूठी प्रशंसा को स्वीकार करने से सच्चे आलोचना शिकार करना ज्यादा आसान कम से कम व्यक्ति अपनी सही स्थिति तो जाना जाता है झूठी प्रशंसा वक्त की तरह है आप जितना उसके नजदीक जाते हैं आपके साथ आपके हाथ इतनी निराशा लगती है क्योंकि यह सिर्फ जल या भ्रम है लोग अपने घटियापन को छिपाने के लिए चेहरे पर ईमानदारी का नकाब लगा लेते हैं.।

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