एक राजा की पत्नी राजा के तीन सवाल

1●बहुत समय पहले की बात है एक राजा था और उसकी तीन पत्निया थी  राजा अपनी पहली पत्नी से बहुत प्यार करता था  वह अपनी दूसरी पत्नी को एक दोस्त की तरह मानता था और जब भी उसको कोई परेसानी होती थी तो वह अपनी पहली पत्नी से सुझाव लेता था राजा अपनी तीसरी पत्नी से प्यार नहीं करता था लेकिन उसकी तीसरी पत्नी उसको बहुत प्यार करती थी राजा हमेसा अपने कामो मे बहुत ही बिजी रहता था एक दिन राजा की तबियत बहुत ही खराब हो गयी और उसके बचने की बहुत ही कम उम्मीद रह गयी  राजा की एक इच्छा थी की वह अकेले नहीं मरना चाहता था उसने अपनी पहली पत्नी को बुलाया और बोला तुम मेरे साथ ऊपर भगवान के पास चलो  यह सुनकर वह बोली मे आप के साथ नहीं जाउंगी मे अभी जीना चाहती हु उसके बाद राजा ने अपनी दूसरी पत्नी को याद किया , जब उसने सुना की उसके पति उसको अपने साथ ले जाना चाहते है तो वह उनसे जाकर बोली  मे अभी जवान हु , में आप के साथ नहीं जाउंगी और आप के मर जाने के बाद में दूसरी शादी कर लूंगी यह सुनकर राजा बहुत ही दुखी हुवा और मन ही मन बहुत उद्दास हो गया और अपनी तीसरी पत्नी को तो बुलाया ही नहीं वह सोच ही रहा था की उसकी तीसरी पत्नी खुद चलकर आ गयी और बोली में आप के साथ चलूंगी  उसकी बात सुनकर राजा बहुत ही खुश हुवा , लेकिन फिर बहुत ही निराश हो गया और बोला मैंने पूरी जिन्दगी तुम को प्यार नहीं किया और आज तुम ने मेरे साथ चलने का वचन दे दिया में अपने आप को कभी माफ़ नहीं कर पाउँगा फिर एक दिन राजा ने अपने तीन प्रशनों के उतरों की तलाश थी राजा चाहता था के अगर उसे इन तीन प्रशनों के उतर मिल जाएं तो उसे किसी चीज़ की आवशयकता नहीं पड़ेगी यह तीन प्रशन थे
1● सबसे जरूरी काम कौन सा है ?
2●किन व्यक्तियों के साथ काम करना सबसे उचित है ?
3●काम शुरू करने के लिए अच्छा समय कौन सा है?
राजा ने घोषणा करवा दी थी के अगर कोई उसके तीन प्रशनों के उतर देगा उसे बड़ा पुरस्कार दिया जाएगा। बहुत सारे लोग राजा के तीन प्रशनों के उतर देने आए परन्तु कोई भी राजा के प्रशनों का सही उतर नहीं दे पाया अब राजा को लगने लगा था के कोई आम इंसान मेंरे तीन प्रशनों का सही उतर नहीं दे सकता राजा को ऐसे महात्मा के बारे में बताया गया जो जंगल में एक कुटिया में रहते थे जो बड़े से बड़े प्रशनों का उतर देने में समर्थ माने जाते थे एक दिन राजा साधरण भेष में अपने कुछ सेनिकों को साथ लेकर उस साधू महात्मा की कुटिया में पहुंचा सेनिकों को उसने पीछे रुकने के लिए कह दिया वह अकेला ही साधू के पास गया जब राजा महात्मा की कुटिया के नजदीक पहुंचा तो उसने देखा के वो अपनी कुटिया के नजदीक फावड़े से खुदाई कर रहा था साधू ने राजा को समीम आते देख लिया और उनसे आने का कारण पूछा राजा ने साधू महाराज को अपने तीनो प्रशनों के बारे में बताया और उनसे उतर जानने की इच्छा जताई परन्तु साधू ने राजा के प्रशनों के उतर देने की वजाय राजा को फावड़ा देते हुए खुदाई करने के लिए कहा राजा भी हैरान था परन्तु वो चुपचाप बिना कुछ पूछे फावड़े के साथ खुदाई करने लगा राजा काफी देर तक खेत की खुदाई करता रहा इतने में एक खून से लथ -पथ व्यक्ति जो पूरी तरह घायल हो चुका था उस साधू की कुटिया के नजदीक आया राजा और साधू ने उस घायल व्यक्ति को सम्भाला और उसकी मलम पट्टी करने लगे कुछ देर बाद घायल आदमी को जब होश आया उसने राजा को देखते ही बोला के वो वहां पर उसका कत्ल करने आया था यह सुनकर राजा को बहुत आश्चर्य हुआ घायल आदमी ने कहा के में उसे अपना शत्रु मानता था क्योंकि आपने मेरे भाई को फांसी की सजा सुनाई थे में अपने भाई की मौत का बदला लेना चाहता था और किसी अवसर की तलाश में था में आज आपको मारने के उदेश्य से आया था और में झाड़ियों में छुपकर आपके आने का इंतज़ार कर रहा था और आपके सेनिकों ने मुझे पहचान लिया और उन्होंने मुझे पूरी तरह से घायल कर दिया परन्तु आप ने मुझे बचाकर नया जीवनदान दे दिया। महाराज अब में आपका सच्चा सेवक बनना चाहता हूं और मेरी भूल के लिए मुझे क्षमा कर दें कृपया इसके बाद साधू ने मुस्कराते हुए राजा से कहा के अभी तो आपको अपने प्रशनों के उतर मिल गए होंगे। राजा अब भी कुछ दुविधा में था साधू ने राजा से कहा तुम्हारे पहले प्रशन का सबसे जरूरी काम कौन सा है उतर है सबसे जरूरी  काम वहीँ होता है जो बिल्कुल हमारे सामने होता है जिस तरह आप ने मुझे खेत जोतने में सहयोग दिया यदि आप मेरे साथ सहानभूति न दिखाते तो आपके जीवन की रक्षा ना हो पाती आपके दुसरे प्रशन का उतर है परामर्श के लिए सबसे एहम कौन है जो इन्सान हमारे सामने हो उसका परामर्श सबसे एहम होता है जैसे उस घायल को हमारी मदद की आवशयकता थी और आपने उसकी जान बचाकर अपने शत्रु को मित्र बना लिया
तीसरे प्रशन का उतर के किसी काम को करने का सबसे उचित समय क्या है वो है अभी राजा साधू के उतरों से संतुष्ट हो गया था और वो साधू का धन्यवाद करते हुए ख़ुशी ख़ुशी वापिस लौट गया दोस्तों महान साहित्कार टालस्टाय से हमें यही शिक्षा मिलती है के वर्तमान के महत्व को कभी भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए हमें भविष्य की चिंता छोड़ वर्तमान में जीना चाहिए .
प्र●चार रक्षक>
एक राजा था जिसका राज्य दूर दूर तक फैला हुआ था उसके राज्य में सभी लोग सुख शांति से रहते थे। राज्य पूरा ख़ुशहाल और संतुष्ट था। उसके राज्य से सटा एक दूसरा  राजा का छोटा सा राज्य था किन्तु वहां के हालात इसके उल्ट थे वहां के लोग दुखी और असंतुस्ट थे। वहां का राजा यह देखकर बड़ा ही दुखी था वह अपने राज्य में किसी न किसी तरह खुशहाली चाहता था आखिरकार वह एक दिन बड़े राज्य के राजा के पास गया और उसने राजा से प्रश्न किया मेरा राज्य इतना छोटा है किन्तु फिर भी वहां रोजाना कोई न कोई उत्पाद पैदा होता रहता है। आपका राज्य इतना बड़ा होने के बावजूद भी यहां कितनी शांति और खुशहाली है इसका रहस्य क्या है तब उस राजा ने बोला मैंने अपने राज्य में चार चौकीदार तैनात कर रखे हैं जो हर पल मेरी रक्षा करते हैं दुसरे राजा ने कहा मेरे राज्य में तो मेरी रक्षा के लिए पूरी फ़ौज है किन्तु आपका काम चार से कैसे चलता है पहले राजा ने उतर दिया मेरे रक्षक दुसरी तरह के हैं  मेरा पहला रक्षक सत्य है वह मुझे असत्य नहीं बोलने देता दूसरा रक्षक प्रेम है यो मुझे हर घृणा से दूर रखता है तीसरा रक्षक न्याय है जो मुझे जाति धर्म और अपराध से दूर रखता है और मेरा चौथा रक्षक त्याग है जो मुझे स्वार्थी बनने से बचाता है इसी वजय से में भौतिक संसार में रहते हुए भी हर प्रकार के लालच और लोभ से दूर रहता हूं .।

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