●मैं आज जो कहानी आपको सुनाने जा रहा हूं, वो अमिताभ बच्चन की किसी फिल्म की कहानी नहीं है मेरी कहानी को पढ़ते हुए अगर आपको कहीं लगे कि मैं आज आपको दीवार या त्रिशूल फिल्म की कहानी सुना रहा हूं, तो इसे मेरी कहानी लिखने का सिर्फ कौशल मात्र मानिएगा मैं जो कुछ भी लिख रहा हूं वो पूरी तरह सत्य है, पर एक ऐसा सत्य जिस पर यकीन करना आपको भले आसान न लगे पर आपका दिल चाहेगा कि आप इस पर यकीन करें आप मेरी कहानी को पढ़ कर लाइक बटन दबाएं या न दबाएं पर मेरा आपसे अनुरोध है कि अपने बच्चों को ये कहानी ज़रूर सुनाएं उन्हें बताएं कि आज की कहानी ख़ास उनके लिए लिखी गई है आप अपने बच्चों को बताएं कि कठोर मेहनत और पक्का इरादा हो तो आदमी कुछ भी पा सकता है मैं आज जो कहानी आपको सुनाने जा रहा हूं वो कहानी है एक 13 साल के बच्चे की एक ऐसा बच्चा, जिसे जीवन में बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था अजीब सी मगर बहुत बड़ी उदासी से गुजरना पड़ा था उसके जीवन में खुशी शब्द का अकाल था उसके जीवन में ग़रीबी थी, भूख थी वो लोगों से मिलने से कतराता था सच बताऊं तो उसे कई बार भावनात्मक आघात भी लग चुका था वो ज़िंदगी से विरक्त था और वो मुस्कुराना भूल गया था आप पूछ सकते हैं कि मैं आपको आज उस बच्चे की कहानी क्यों सुनाना चाह रहा हूं जिसकी ज़िंदगी में सुनाने लायक कुछ है ही नहीं है बहुत कुछ है मेरे पास उसकी ज़िंदगी के बारे में सुनाने के लिए इसलिए है क्योंकि सिर्फ दो दिन पहले वो बच्चा अख़बार की सुर्खियों में था। यकीनन वो अब बच्चा नहीं रहा, इसलिए आप सोच भी नहीं पा रहे कि मैं किसकी कहानी आपको सुनाने जा रहा हूं मुझे मालूम है कि जैसे ही मैं बच्चे का नाम आपको बताऊंगा, आप में से कई लोग उसे पहचान लेंगे। तब आप कहेंगे कि अरे, इसके विषय में तो मैंने पढ़ा था।खैर, मैं ज़्यादा भूमिका न बनाते हुए सीधे-सीधे स्पेन में रहने वाले उस 13 साल के बच्चे की कहानी पर आता हूं, जिसकी पढ़ाई इसलिए छूट गई थी, क्योंकि वो फीस नहीं दे सकता था। क्योंकि वो किताबें नहीं खरीद सकता था क्योंकि स्कूल जाने के लिए उसके पास कपड़े नहीं थे। यहीं मैं चाहूं, तो बच्चे का नाम आपको विजय बता सकता हूं और कह सकता हूं कि वो बच्चा भूख और ग़रीबी से तंग आकर तस्करों के चक्कर में फंस गया और एक दिन जिसके पास स्कूल की फीस किताब के पैसे और पहनने को कपड़े तक नहीं थे, वो अचानक गाड़ी, बंगला और बहुत बड़ी रकम वाले बैंक बैलेंस का मालिक बन गया। मैं कह सकता हूं कि उसकी मां ने मजदूरी की थी और उसकी मां ने जिस इमारत की दीवार के सीमेंट को अपनी मेहनत के पसीने से साना था, उस बच्चे ने बड़ा होने के बाद उसी इमारत को खरीद लिया और दर्शकों की तालियों का हकदार बना।पर ऐसा कुछ भी आज आपको नहीं सुनाने जा रहा।मैं आज आपको उस बच्चे की कहानी सुनाने जा रहा हूं, जिसकी मां अपने बेटे की छोटी सी हथेली को पकड़ कर अपने देश के बैंक में गई थी कि कुछ उधार दे दीजिए, ये बच्चा पढ़ जाएगा। बैंक वालों ने उस महिला को अपने बैंक से धक्के मार कर निकाल दिया। कहा कि ऐेसे हर ऐरे-गैरे को उधार देते रहे, तो बैंक को ही कटोरा लेकर सड़क पर खड़ा हो जाना पड़ेगा।बच्चा सबकुछ देख रहा था। उसने कोई प्रतिरोध नहीं किया वो किसी गलत संगत में नहीं पड़ा। उसने अपनी मां के आंसू पोंछे और कहा मां चिंता मत करो मैं काम करूंगा। मैं बहुत मेहनत से काम करूंगा। मां, मैं इतनी लगन और ईमानदारी से काम करूंगा कि एक दिन तकदीर मेरे कदमों में होगी और मैं मुकद्दर का सिकंदर बन जाऊंगा मां ने कहा था हां ऐसा ही होगा। तुमने समझ लिया है कि मेहनत ही सबकुछ है। मेहनत और लगन से जिसका नाता जुड़ गया समय उसका साथी बन जाता है। आज से समय तुम्हारा साथी बना, मेरे लाल, अमेनिको जी हां, आज मैं कहानी सुनाने जा रहा हूं स्पेन के एक 13 साल के बच्चे की, जिसका नाम है अमेनिको अमेनिको ओर्तेगा।हो सकता है नाम से उसे आप न पहचान पा रहे हों। पर रुकिए, मैं उससे आपका परिचय कराता हूं लेकिन पहले ये बता दूं कि उस दिन बैंक से झिड़की खाने के बाद अमेनिको ने अपनी मां से कहा कि मां मुझे पास वाले दर्ज़ी के यहां काम पर लगा दो।मां ने ऐसा ही किया बच्चा कपड़ा सिलने वाले के यहां काम करने लगा काम करने से अधिक महत्व होता है काम को सीखना बच्चा काम सीखने लगा बहुत ज़ल्दी वो एक कुशल कारीगर बन गया बच्चा बड़ा हो चला था फिर उसकी मां ने उसकी शादी करा दी कमाऊ बेटा एक छोटा सा घर तो चला ही सकता है, शादी हो गई तो घर में किलकारियां गूंजेंगी, मां का बुढ़ापा लाड़-दुलार में कट जाएगा।पर शादी होते ही अमेनिको ने अपनी पत्नी से कहा कि उसने कई साल पहले खुद से प्रतिज्ञा की थी कि वो एक दिन मुकद्दर का सिकंदर बनेगा। वो तकदीर को अपने कदमों के नीचे देखेगा। एक दवो तकदीर को अपने कदमों के नीचे देखेगा। एक दिन वो ऐसा कुछ कर गुज़रेगा कि संजय सिन्हा उसकी कहानी अपने परिजनों को सुनाएंगे।उस दिन उसकी पत्नी उसे गले से लगा कर बहुत देर तक रोती रही। “क्या करोगे अमेनिको? ऐसा कौन सा काम तुम करोगे, जिससे तकदीर तुम्हारे कदमों में होगी? ऐसा क्या हो जाएगा, जो संजय सिन्हा एक दिन तुम्हारी कहानी लिखेंगे अमेनिको ने मुस्कुराते हुए कहा था मैं कपड़ों का बिजनेस करूंगा, रोसालिया रोसालिया उसकी पत्नी का नाम था कपड़े तुम कपड़े बेचोगे हां मैं कपड़े बेचूंगा ठीक है, तुम अपना काम शुरू करो रोसालिया ने इतना कहा और अपने थोड़े से गहने जो उसके पास थे उतार कर अमेनिको के हाथ में थमा दिए उसे बेच कर करीब सौ डॉलर मिले और छोटे से कमरे से कपड़े का कारोबार शुरू हो गया यह महज़ इत्तेफाक ही है कि जिस साल भारत में अमिताभ बच्चन की ‘दीवार’ भारत के रूपहले पर्दे पर दस्तक दे रही थी उसी साल को एक नाम मिलता है। अमेनिको का अपने काम का सपना स्पेन में दस्तक दे रहा था। दीवार से एक नए अमिताभ बच्चन का जन्म हो रहा था और उधर दुनिया को फैशन की दुनिया में एक नया ब्रांड मिलने जा रहा था - ज़ारा।
जी हां, आज मैं संसार के सबसे बड़े फैशन कारोबारी ‘ज़ारा’ के मालिक की कहानी सुना रहा हूं पूरी दुनिया में सात हज़ार ‘ज़ारा’ शो रूम के मालिक अमेनिको की कहानी मैं आज आपको इसलिेए सुना रहा हूं, क्योंकि दो दिन पहले अमिताभ बच्चन के साथ ही पैदा हुआ यह शख्स अमेनिको ओर्तेगा, अचानक चर्चा में आ गया। यह शख्स चर्चा में इसलिए आ गया क्योंकि इसने दो दिन पहले माइक्रो सॉफ्ट के मालिक और दुनिया के सबसे अमीर आदमी बिल गेट को भी अमीरी के ग्राफ में पीछे छोड़ कर दिया था जी हां दो दिन पहले ही अमेनिको ने संसार के सबसे अमीर लोगों की लिस्ट में अपना नाम दर्ज़ कराया है आप इंटरनेट खंगाल लीजिए दो दिन पुराना अख़बार ढूंढ लीजिए आपको पता चल जाएगा कि जो लोग ख़ुद से जब कोई वादा करते हैं, तो उसके क्या मायने होते हैं। अमेनिको ने खुद से वादा किया था कि वो एक दिन संसार का सबसे अमीर आदमी बनेगा दो दिन पहले उसका सपना पूरा हो गया उसका नाम संसार के सबसे अमीर लोगों की लिस्ट में आ गया ख़बर मेरे पास आई, मैं ख़बर से लिपट गया वाह ये हुई न बात कामयाबी उसे मिलती है जो जोखिम उठाने के लिए अपने साहस को कभी नहीं चूकने देता ऐसे लोग ही अमर हो जाते हैं ऐसे लोगों को कोई कभी आघात नहीं पहुंचा सकता ऐसे लोग जब ज़िंदगी की आंखों में अपनी आंखें डाल देते हैं, वो कहानी बन जाते है और फिर एक बार उसे एक छोटा सा बछड़ा मिल गया उसने ख़ुशी से उसे पाल लिया उसने सोचा आज तक वो अकेला था अब वो इस बछड़े को अपने बेटे के जैसे पालेगा हरिराम का दिन उसके बछड़े से ही शुरू होता और उसी पर ख़त्म होता वो रात दिन उसकी सेवा करता और उसी से अपने मन की बात करता कुछ समय बाद बछड़ा बैल बन गया उसकी जो सेवा हरिराम ने की थी उससे वो बहुत ही सुंदर और बलशाली बन गया था एक बार उसे एक छोटा सा बछड़ा मिल गया उसने ख़ुशी से उसे पाल लिया उसने सोचा आज तक वो अकेला था अब वो इस बछड़े को अपने बेटे के जैसे पालेगा हरिराम का दिन उसके बछड़े से ही शुरू होता और उसी पर ख़त्म होता वो रात दिन उसकी सेवा करता और उसी से अपने मन की बात करता कुछ समय बाद बछड़ा बैल बन गया उसकी जो सेवा हरिराम ने की थी उससे वो बहुत ही सुंदर और बलशाली बन गया था एक दिन डरते डरते हरिराम सेठ दीनदयाल के घर पहुँचा दीनदयाल ने उससे आने का कारण पूछा तब हरिराम ने शर्त के बारे में कहा सेठ जोर जोर से हँसने लगा बोला हरिराम बैल के साथ रहकर क्या तुम्हारी मति भी बैल जैसी हो गई हैं अगर शर्त हार गये तो हजार मुहर के लिये तुम्हे अपनी झोपड़ी तक बैचनी पड़ेगी यह सुनकर हरिराम और अधिक डर गया लेकिन मुँह से निकली बात पर मुकर भी नहीं सकता था
शर्त का दिन तय किया गया और सेठ दीनदयाल ने पुरे गाँव में ढोल पिटवाकर इस प्रतियोगिता के बारे गाँव वालो को खबर दी और सभी को यह अद्भुत नजारा देखने बुलाया सभी खबर सुनने के बाद हरिराम का मजाक उड़ाने लगे और कहने लगे कि यह शर्त तो हरिराम ही हारेगा यह सब सुन सुनकर हरिराम को और अधिक दर लगने लगा और उससे नंदी से घृणा होने लगी वो उसे कौसने लगा बार बार उसे दोष देता और कहता कि कहाँ मैंने इस बैल को पाल लिया मेरी अच्छी भली कट रही थी इसके कारण सर की छत से भी जाऊँगा और लोगो की थू थू होगी वो अलग अब हरिराम को नंदी बिलकुल भी रास नहीं आ रहा था वह दिन आ गया जिस दिन प्रतियोगिता होनी थी सौ माल से भरी गाड़ियों के आगे नंदी को जोता गया और गाड़ी पर खुद हरिराम बैठा सभी गाँव वाले यह नजारा देख हँस रहे थे और हरिराम को बुरा भला कह रहे थे हरिराम ने नंदी से कहा देख तेरे कारण मुझे कितना सुनना पड़ रहा हैं मैंने तुझे बेटे जैसे पाला था और तूने मुझे सड़क पर लाने का काम किया हरिराम के ऐसे घृणित शब्दों के कारण नंदी को गुस्सा आगया और उसने ठान ली कि वो एक कदम भी आगे नहीं बढ़ायेगा और इस तरह हरिराम शर्त हार गया सभी ने उसका मजाक उड़ाया और उसे अपनी झोपड़ी सेठ को देनी पड़ी अब हरिराम नंदी के साथ मंदिर के बाहर पड़ा हुआ था और नंदी के सामने रो रोकर उसे कोस रहा था उसकी बाते सुन नंदी को सहा नहीं गया और उसने कहा बाबा हरिराम यह सब तुम्हारे कारण हुआ यह सुन हरिराम चौंक गया उसने गुस्से में पूछा कि क्या किया मैंने तुमने भांग खा रखी हैं क्या तब नंदी ने कहा कि तुम्हारे प्रेम के बोल के कारण ही भगवान ने मुझे बोलने की शक्ति दी और मैंने तुम्हारे लिये यह सब करने की सोची लेकिन तुम उल्टा मुझे ही कोसने लगे और मुझे बुरा भला कहने लगे तब मैंने ठानी मैं तुम्हारे लिये कुछ नहीं करूँगा लेकिन अब मैं तुमसे फिर से कहता हूँ कि मैं सो गाड़ियाँ खींच सकता हूँ तुम जाकर फिर से शर्त लगाओ और इस बार अपनी झोपड़ी और एक हजार मुहरे की शर्त लगाना हरिराम वही करता हैं और फिर से शर्त के अनुसार सो गाड़ियाँ तैयार कर उस पर नंदी को जोता जाता हैं और फिर से उस पर हरिराम बैठता हैं और प्यार से सहलाकर उसे गाड़ियाँ खीचने कहता हैं और इस बार नंदी यह कर दिखाता हैं जिसे देख सब स्तब्ध रह जाते हैं और हरिराम शर्त जीत जाता हैं सेठ दीनदयाल उसे उसकी झोपड़ी और हजार मुहरे देता हैं
शर्त का दिन तय किया गया और सेठ दीनदयाल ने पुरे गाँव में ढोल पिटवाकर इस प्रतियोगिता के बारे गाँव वालो को खबर दी और सभी को यह अद्भुत नजारा देखने बुलाया सभी खबर सुनने के बाद हरिराम का मजाक उड़ाने लगे और कहने लगे कि यह शर्त तो हरिराम ही हारेगा यह सब सुन सुनकर हरिराम को और अधिक दर लगने लगा और उससे नंदी से घृणा होने लगी वो उसे कौसने लगा बार बार उसे दोष देता और कहता कि कहाँ मैंने इस बैल को पाल लिया मेरी अच्छी भली कट रही थी इसके कारण सर की छत से भी जाऊँगा और लोगो की थू थू होगी वो अलग अब हरिराम को नंदी बिलकुल भी रास नहीं आ रहा था वह दिन आ गया जिस दिन प्रतियोगिता होनी थी सौ माल से भरी गाड़ियों के आगे नंदी को जोता गया और गाड़ी पर खुद हरिराम बैठा सभी गाँव वाले यह नजारा देख हँस रहे थे और हरिराम को बुरा भला कह रहे थे हरिराम ने नंदी से कहा देख तेरे कारण मुझे कितना सुनना पड़ रहा हैं मैंने तुझे बेटे जैसे पाला था और तूने मुझे सड़क पर लाने का काम किया हरिराम के ऐसे घृणित शब्दों के कारण नंदी को गुस्सा आगया और उसने ठान ली कि वो एक कदम भी आगे नहीं बढ़ायेगा और इस तरह हरिराम शर्त हार गया सभी ने उसका मजाक उड़ाया और उसे अपनी झोपड़ी सेठ को देनी पड़ी अब हरिराम नंदी के साथ मंदिर के बाहर पड़ा हुआ था और नंदी के सामने रो रोकर उसे कोस रहा था उसकी बाते सुन नंदी को सहा नहीं गया और उसने कहा बाबा हरिराम यह सब तुम्हारे कारण हुआ यह सुन हरिराम चौंक गया उसने गुस्से में पूछा कि क्या किया मैंने तुमने भांग खा रखी हैं क्या तब नंदी ने कहा कि तुम्हारे प्रेम के बोल के कारण ही भगवान ने मुझे बोलने की शक्ति दी और मैंने तुम्हारे लिये यह सब करने की सोची लेकिन तुम उल्टा मुझे ही कोसने लगे और मुझे बुरा भला कहने लगे तब मैंने ठानी मैं तुम्हारे लिये कुछ नहीं करूँगा लेकिन अब मैं तुमसे फिर से कहता हूँ कि मैं सो गाड़ियाँ खींच सकता हूँ तुम जाकर फिर से शर्त लगाओ और इस बार अपनी झोपड़ी और एक हजार मुहरे की शर्त लगाना .।
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