परियों की वेचार।

एक समय की बात है कि एक गांव में एक बहुत उदार तथा दयालु नन्हीं लड़की रहती थी। वह थी तो अनाथ, पर ऐसा लगता था जैसे सारा संसार उसी का है। वह सभी से प्रेम करती थी और दूसरे सब भी उसे बहुत चाहते थे।
पर दुख की बात यह थी कि उसके पास रहने के लिए कोई घर नहीं था। एक दिन इस बात से वह इतनी दुखी हुई कि उसने किसी को कुछ बताए बिना ही अपना गांव छोड़ दिया। वह जंगल की ओर चल दी। उसके हाथ में बस एक रोटी का टुकड़ा था।
वह कुछ ही दूर गई थी कि उसने एक बूढ़े आदमी को सड़क के किनारे बैठे देखा। वह बूढ़ा-बीमार-सा लगता था। उसका शरीर हड्डियों का ढांचा मात्र था। अपने लिए स्वयं रोटी कमाना उसके बस का काम नहीं था। इसलिए वह भीख मांग रहा था।
उसने आशा से लड़की की ओर देखा।
‘‘ओ प्यारी नन्हीं बिटिया ! मैं एक बूढ़ा आदमी हूं। मेरी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। मेहनत-मजदूरी करने की मेरे शरीर में शक्ति नहीं, तीन दिन से मैंने कुछ नहीं खाया है। मुझ पर दया करो और मुझे कुछ खाने को दो।’’ वह बूढ़ा व्यक्ति गिड़गिड़ाया।
नन्हीं लड़की स्वयं भी भूखी थी। उसने रोटी की टुकड़ा इसलिए बचा रखा था ताकि खूब भूख लगने पर खाए। फिर भी उसे बूढ़े व्यक्ति पर दया आ गई। उसने अपना रोटी का टुकड़ा बूढ़े को खाने के लिए दे दिया।
वह बोली-‘‘बाबा, मेरे पास बस यह रोटी का टुकड़ा है। इसे ले लो, काश ! मेरे पास और कुछ होता।’’
इतना कहकर और रोटी का टुकड़ा देकर व आगे चल पड़ी। उसने मुड़कर भी नहीं देखा।
वह कुछ ही दूर और आगे गई थी कि उसे एक बालक नजर आया, जो ठंड के मारे कांप रहा था। उदार और दयालु तो वह थी ही, उस ठिठुरते बालक के पास जाकर बोली-‘‘भैया, तुम तो ठंड से मर जाओगे। मैं तुम्हारी कुछ सहायता कर सकती हूँ ?’’
बालक ने दयनीय नजरों से नन्हीं लड़की की ओर देखा-
‘‘हां दीदी ! यहां ठंड बहुत है। सिर छुपाने के लिए घर भी नहीं है मेरे पास। क्या करूं ? तुम्हारी बहुत कृपा होगी यदि तुम मुझे कुछ सिर ढंकने के लिए दे दो।’’ छोटा बालक कांपता हुआ बोला।
नन्हीं लड़की मुस्कुराई और उसने अपने टोपी (हैट) उतारकर बालक के सिर पर पहना दी। बालक को काफी राहत मिली।‘‘भगवान करे, सबको तुम्हारे जैसी दीदी मिले। तुम बहुत उदार व कृपालु हो।’’ बालक ने आभार प्रकट करते हुए कहा, ‘‘ईश्वर तुम्हारा भला करे।’’
लड़की मुंह से कुछ बोली नहीं। केवल बालक की ओर प्यार से मीठी-सी मुस्कराहट के साथ देखकर आगे बढ़ गई।वह सिर झुकाकर कुछ सोचती चलती रही।
आगे जंगल में नन्हीं लड़की को एक बालिका ठंड से कंपकंपाती हुई मिली, जैसे भाग्य उसकी परीक्षा लेने पर तुला था। उस छोटी-सी बालिका के शरीर पर केवल एक पतली-सी बनियान थी। बालिका की दयनीय दशा देखकर नन्हीं लड़की ने अपना स्कर्ट उतार कर उसे पहना दिया और ढांढस बंधाया-‘‘बहना, हिम्मत मत हारो। भगवान तुम्हारी रक्षा करेगा।’’
अब नन्हीं लड़की ने तन पर केवल स्वेटर रह गया था। वह स्वयं ठंड के मारे कांपने लगी। परंतु उसके मन में संतोष था कि उसने एक ही दिन में इतने सारे दुखियों की सहायता की थी। वह आगे चलती गई। उसके मन में कोई स्पष्ट लक्ष्य नहीं था कि उसे कहां जाना है।
अंधेरा घिरने लगा था। चांद बादलों के पीछे से लुका-छिपी का खेल खेल रहा था। साफ-साफ दिखाई देना भी अब बंद हो रहा था। परंतु नन्हीं लड़की ने अंधेरे की परवाह किए बिना ही अनजानी मंजिल की ओर चलना जारी रखा।
एकाएक सिसकियों की आवाज उसके कानों में पड़ी। ‘यह कौन हो सकता है ?’ वह स्वयं से बड़बड़ाई। उसने रुककर चारों ओर आंखें फाड़कर देखा।सबसे बड़े राजकुमार ने राजा से कहा कि रात में वह पहरा देगा और चोर को पकड़ने की कोशिश करेगा। राजा ने उसको इसकी इजाज़त दे दी। बड़ा राजकुमार रात में पहरा देने लगा, लेकिन दो घंटे बाद ही उसे नींद आ गई और वह सो गया।
सुबह उठकर जब उसने सेबों को गिना तो वह देखकर चकित रह गया कि रात-भर में एक और सेब गायब हो गया था। इसके बाद दूसरी रात को मंझले राजकुमार ने पहरा देने का काम संभाला, उसे भी नींद आ गई और तीसरा सेब चोरी हो गया।
राजा बहुत चिन्तित था। दरबारियों की भी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए ! सब लोग उदास बैठे थे कि इतने में सबसे छोटा राजकुमार आया और उसने कहा कि आज की रात मैं पहरा दूंगा और चोर को पकड़ूंगा। राजा इस राजकुमार से खुश नहीं रहता था। वह उसे मूर्ख भी मानता था। उसने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘तुम क्या समझते हो, क्या तुम्हें इसमें सफलता मिलेगी ? तुमसे बड़े और तुमसे ज़्यादा समझदार दोनों राजकुमार इस काम में असफल हो चुके हैं। तुम जाओ अपना काम करो।’’
लेकिन छोटा राजकुमार नहीं माना। उसने राजा से प्रार्थना की कि उसे एक मौका ज़रूर दिया जाए। अन्त में राजा राज़ी हो गया।

राजकुमार रात में पहरा देने लगा। उसने तय किया कि वह किसी भी हालत में नहीं सोएगा और चोर को ज़रूर पकड़ेगा। जब आधी रात हुई और बारह बजे का आखिरी घंटा बजा तो राजकुमार ने देखा कि एक सुन्दर सोने की चिड़िया कहीं से उड़ती हुई आई और सेब के पेड़ पर बैठ गई। उसने देखते-देखते सोने का एक सेब तोड़कर अपनी चोंच में पकड़ लिया।
राजकुमार ने फौरन निशाना साधकर तीर चला दिया। लेकिन तीर चिड़िया को नहीं लगा और वह पंख फड़फड़ाकर उड़ गई। हां, इतना अवश्य हुआ कि उसका एक सुनहरा पंख टूटकर ज़मीन पर आ गिरा। दूसरे दिन सुबह राजकुमार ने राजा को सारी बात, बता दी और वह सोने का पंख उनके सामने रख दिया। पंख इतना सुंदर और इतना कीमती था कि राजा उसे देखता ही रह गया उसने कहा, ‘‘अगर उस चिड़िया का एक पंख इतना सुन्दर है तो वह पूरी चिड़िया किनती सुन्दर होगी ! मैं चाहता हूं कि उस चिड़िया को कोई पकड़ लाए।’’
सबसे पहले बड़ा राजकुमार इस काम के लिए रवाना हुआ। चलते-चलते वह एक जंगल में पहुंचा। वहां उसने एक लोमड़ी को एक पेड़ के नीचे आराम करते हुए देखा। राजकुमार ने मौका देखकर तीर अपने धनुष पर चढ़ा लिया । वह तीर छोड़ने ही जा रहा था कि लोमड़ी ने चिल्लाकर कहा, ‘‘राजकुमार, मुझे मत मारो। मुझे पता है कि तुम सोने की चिड़िया की खोज में निकले हो। तुम मेरी राय मानो तो तुम्हारा काम जल्दी ही पूरा हो जाएगा। तुम इसी रास्ते से सीधे चले जाओ। शाम होने पर तुम एक गांव में पहुंचोगे। वहां तुम्हें आमने-सामने दो सरायें मिलेंगी। एक सराय खूब सजी-सजाई और सुन्दर-सी होगी लेकिन तुम उसमें मत ठहरना। तुम उसके सामने वाली दूसरी सराय में ठहरना, जो बहुत मामूली और देखने में भी भद्दी-सी होगी। ऐसा करने पर तुम्हारा काम आसानी से पूरा हो जाएगा।’’

लोमड़ी का बात सुनकर राजकुमार को हंसी आ गई। उसने डांटकर कहा, ‘‘भाग जा यहां से ! मुझे तुम्हारी सलाह की ज़रूरत नहीं है।’’ यह कह कर उसने तीर छोड़ दिया। लेकिन लोमड़ी बहुत चालाक थी। वह बचकर निकल भागी।
राजकुमार आगे चलता गया। शाम को जब वह एक गांव में पहुंचा तो उसने देखा कि वहां सड़क के किनारे सचमुच दो सरायें थीं। उनमें से एक सराय खूब सजी-सजायी थी और उसके अन्दर से लोगों के नाचने-गाने की आवाज़ें आ रही थीं। दूसरी सराय भद्दी-सी थी और वहां अंधेरा घिरा हुआ था। राजकुमार सजी-सजायी सराय में ठहर गया। थोड़ी देर में वह भूल गया कि वह असल में सोने की चिड़िया की खोज में निकला था।
उधर जब काफी समय बीत गया और बड़ा राजकुमार नहीं लौटा तो मंझला राजकुमार सोने की चिड़िया की खोज में चल पड़ा। वह भी उसी तरह चलते-चलते जंगल में पहुंचा तो वही लोमड़ी उसे भी मिली। इस राजकुमार ने भी लोमड़ी की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। जब वह शाम को उस गांव में पहुंचा तो बड़े राजकुमार की तरह सजी-सजायी सराय में ठहरा। वहां के नाच-रंग में मस्त होकर वह भी अपना काम भूल गया। यहां तक कि उसे घर लौटने की भी सुध न रही।
अन्त में सबसे छोटे राजकुमार ने राजा से कहा कि मैं सोने की चिड़िया की खोज में जाऊंगा। राजा को विश्वास था कि जब उससे बड़े दोनों राजकुमार इस काम में सफल नहीं हुए तो इसे और भी सफलता नहीं मिलेगी। लेकिन उसके ज़िद करने पर राजा ने उसे इजाज़त दे दी।‘ओह ! एक नन्हा बच्चा !’’ नन्हीं लड़की को एक बड़े पेड़ के पास एक छोटे से नंगे बच्चे की आकृति नजर आ गई थी। वह उस आकृति के निकट पहुंची और पूछा-‘‘नन्हें भैया, तुम क्यों रोते हो ? ओह हां, तुम्हारे तन पर तो कोई कपड़ा ही नहीं है। हे भगवान, इस बच्चे पर दया करो। यह कैसा अन्याय है कि एक इतना छोटा बच्चा इस सर्दी में नंगा ठंड से जम रहा है !’’ उसका गला रुंध गया था।
नन्हें बच्चे ने कांपते और सिसकते हुए कहा-‘‘द-दीदी, ब...बहुत कड़ाके की सर्दी है। मुझ पर दया करो। कुछ मदद करो।’’’‘‘हां-हां, नन्हे भैया। मैं अपना स्वेटर उतारकर तुम्हें दे रही हूं। बस यही कपड़ा है मेरे पास। लेकिन तुम्हें इसकी मुझसे अधिक जरूरत है।’’ ऐसा कहते हुए नन्हीं लड़की ने स्वेटर छोटे बच्चे को पहना दिया।
अब उसके पास तन पर कपड़े के नाम पर एक धागा भी नहीं रह गया था।
वह रुकी नहीं। चलती रही। इसी प्रकार चलते-चलते वह जंगल में एक खुली जगह जा पहुंची। वहां से आकाश दीख रहा था और दीख रहे थे बादलों से लुका-छिपी खेलता चांद तथा टिम-टिम करते तारे।
अब सर्दी बढ़ गई थी और ठंड असहनीय हो गई थी। नन्हीं लड़की का शरीर बुरी तरह कांपने लगा था और दांत किटकिटा रहे थे। उसने सिर उठाकर आकाश की ओर देखा और एक आह भरी। फिर आंखों में छलकते आंसुओं के साथ वहा से चाली गही .।...

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