विश्वास की शक्ति ...

रिंकू के जीवन की कहानी कुछ यूं है. स्कूल की पढाई के दौरान रिंकू अपने परिवार के साथ एक छोटे से शहर में रहता था. पढाई-लिखाई में इसका मन नहीं लगता था. अपनी कक्षा में ये हमेशा ही फिसड्डी रहता था. मुश्किल से किसी तरह पास होकर अगली कक्षा में पहुँचता था. स्कूल के बच्चों से लेकर मोहल्ले तक लोग रिंकू का मजाक उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे. रिंकू की पढाई में कमजोरी से उनके माता-पिता भी दुखी रहते थे. पढाई में पिछड़ने का दुःख तो रिंकू को भी होता था, परन्तु कोशिश करने पर भी पढाई में उसका मन नहीं लगता था.
एक बार की बात है एक लड़की थी जिसका नाम सोनम था. वह बचपन से ही पढ़ाई में बहुत ही होशियार थी और इसके लिए उसे कई मेडल भी मिले. किन्तु उसकी पढ़ाई से ज्यादा रूचि क्रिकेट में थी और वह बड़ी हो कर क्रिकेटर बनना चाहती थी. सोनम के पिता डॉक्टर थे और माँ गृहणी थीं. सोनम के पिता चाहते थे कि सोनम बड़ी हो कर डॉक्टर बने किन्तु सोनम यह नहीं चाहती थी. वह हमेशा अपने पापा से जिद्द किया करती थी कि वे उसे क्रिकेट खेलने की आज्ञा दे दें, लेकिन उसके पिता यह जानते थे कि यदि उन्होंने उसे क्रिकेट खेलने की अनुमति दे दी तो वह पढ़ाई नहीं करेगी. वे हमेशा सोनम से यह कहते रहते कि – “यह लडकियों का खेल नहीं है इसलिए तुम यह नहीं खेल सकती”. इस वजह से सोनम अपने पिता से हमेशा नाराज रहती थीं, किन्तु सोनम की माँ सोनम को हमेशा सपोर्ट किया करती थी. वे अक्सर सोनम को छुप कर खेलने जाने के लिए अनुमति दे दिया करती थीं और सोनम के पिता से झूठ बोल देती थीं कि वह पढ़ाई कर रही है. ऐसा ही चलता रहा और वह कुछ समय बाद क्रिकेट के खेल में माहिर हो गई और पढ़ाई में होशियार होने की वजह से उसने स्कूल की पढ़ाई भी अच्छे अंकों से पूरी कर ली, जिससे उसके पिता को भी उसके क्रिकेट खेलने के बारे में कुछ नहीं पता चला स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उसके पिता ने उसे डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए बाहर पढने भेज दिया. सोनम कॉलेज की पढ़ाई के लिए बाहर चली तो गई थी किन्तु उसका इसमें मन नहीं लगता था, क्यूकि उसे चारों ओर क्रिकेट ही क्रिकेट दिखाई देता था. फिर एक बार उसकी माँ ने उससे कहा कि वह यह सब छोड़ दे और क्रिकेट खेलना शुरू कर दे और उसने अपने पिता को बिना बताये अपनी माँ की बात मानते हुए क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया, इसके लिए उसकी माँ ने उसका पूरा सपोर्ट भी किया. क्रिकेट खेलते – खेलते सोनम ने एक के बाद एक कई ट्रोफी जीती  बोर्ड की परीक्षा में उसे पास करने की उम्मीद लगभग न के बराबर थी. अपने जीवन से निराश रिंकू एक दिन जब स्कूल से घर लौट रहा था तो रास्ते में एक जगह रामायण की कथा हो रही थी. उस समय ओजस्वी स्वर में कथावाचक लंका कांड की व्याख्या कर रहे थे. कथावाचक के ओजस्वी स्वर से बुरे ख्यालों में खोये रिंकू की तंद्रा भंग हुई. और वह सम्मोहित होकर कथा स्थल की ओर चल पड़ा. कथा स्थल पर पहुंचकर वह जगह बनाते हुए आगे की पंक्ति में जा बैठा. रिंकू को देखकर कथावाचक मुस्कराए और अपनी कथा को जारी रखा. रिंकू एकाग्रता से कथा के एक-एक शब्द को सुन रहा था. इस समय कथावाचक कह रहे थे, “समस्या बड़ी गंभीर थी. सागर तट पर भगवान राम की सेना के सभी योद्धा लक्ष्मण, हनुमान, सुग्रीव, अंगद आदि गंभीर सोच में डूबे थे. जटायु से यह तो पता लग गया था कि रावण सीता को लेकर दक्षिण दिशा में उफनते समुद्र के पार स्थित अपने राज्य लंका में गया है, परन्तु इस विशाल समुद्र को लांघकर लंका जाएगा कौन? समस्या विकट थी. तभी वहां की शांति सुग्रीव के आवाज़ से भंग हुई. सुग्रीव ने प्रभु राम से कहा कि हमारे बीच एक ऐसे दिव्य शक्ति हैं जो समुद्र लांघकर लंका जा सकती हैं. तब भगवान राम की जिज्ञासा को शांत करने के लिए सुग्रीव ने महाबली हनुमान की ओर देखा. सुग्रीव के संकेत से हनुमान जी सकपका गए. हनुमान जी की असमंजसता को भांपते हुए सुग्रीव ने कहा – हे पवनपुत्र ! संभवतः आपको अपनी शक्ति का ज्ञान नहीं है. बचपन में आपने सूर्य को एक फल समझते हुए एक छलांग में उसे सैकड़ों कोस दूर जाकर निगल लिया था तो फिर लंका की दूरी ही क्या है? जरूरत है तो सिर्फ आपको अपने विश्वास को जगाने की. आप जब अपने विश्वास को जगा लेंगे और मन में ठान लेंगे तो शक्ति आपमें स्वतः आ जाएगी. सुग्रीव की बात सुनकर एक तरफ जहाँ हनुमान जी को आश्चर्य हुआ वहीँ उनका विश्वास भी जागा और वे समुद्र लांघने को तैयार हो गए. अगले ही दिन उन्होंने पूर्ण विश्वास के साथ समुद्र लांघते हुए लंका की ओर प्रस्थान किया. रास्ते में मुश्किलें तो बहुत आईं फिर भी वे सभी मुश्किलों को परास्त करते हुए लंका में माँ सीता को ढूंढने में सफल हुए.”
फिर एक बार एक खेल में वह बहुत ही गंभीर तरह से घायल हो गई, और उसे हॉस्पिटल में एडमिट किया गया. सोनम की माँ को सोनम के पिता से सब कुछ बताना पड़ा और सोनम के पिता यह सब जान कर बहुत ही ज्यादा गुस्सा हुए और सोनम के पास जा कर उससे कहने लगे – “तुमने ये ठीक नहीं किया मैंने कहा था यह लड़कियों का खेल नहीं है और तुम मुझे बिना बताये क्रिकेट खेलने लगी”. ऐसा कहकर वे सोनम से बहुत नाराज होकर वहाँ से चले गए. डॉक्टर ने भी यह कह दिया कि सोनम अब कभी भी क्रिकेट नहीं खेल पायेगी. सोनम यह सब सुनकर बहुत ही ज्यादा दुखी हो गई और उसने सोचा की उसने ऐसा करके अपने पिता का दिल दुखाया है, वह बहुत से महत्वपूर्ण क्रिकेट मैच का हिस्सा भी नहीं बन सकी, जोकि उसका सपना था. किन्तु उसके दिमाग में अपने पिता की एक बात बार – बार घूम रही थी कि क्रिकेट लडकियों का खेल नहीं है, और वह किसी भी हालत में अपने पिता की इस बात को गलत साबित करना चाहती थी.
सोनम कुछ दिनों तक ऐसे ही पड़ी रहीं तब उसकी माँ ने उससे कहा कि – “यदि तुम्हे अपने पिता को गलत साबित करना है तो तुम्हें उठना होगा और कुछ कर दिखाना होगा”. तब उसने हिम्मत करते हुए अपने शरीर में लगी सारी पट्टियाँ हटा दी और उठ खड़ी हुई और रोज प्रयास करते हुए कुछ महीनों बाद वह चलने भी लगी. इस तरह प्रयास करते – करते वह बिलकुल ठीक हो गई. ठीक होने के बाद उसने फिर से क्रिकेट खेलना शुरु कर दिया, शुरुआत में सोनम खेल में हर बार हारती रही, किन्तु उसने अपने हौसलों को कभी कम नहीं होने दिया और वह कोशिश करती रही.
कोशिश करते – करते उसने धीरे – धीरे सफलता की ओर कदम बढ़ा लिया और वह देखते ही देखते एक बहुत बड़ी क्रिकेटर बन गई और उसने अपने पिता की यह बात गलत साबित कर दी कि लडकियाँ कुछ नहीं कर सकती. अपनी बेटी की यह कमियाबी देखकर उसके पिता को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने अपने बेटी से माफ़ी मांगी और साथ ही सोनम के क्रिकेटर बनने के बाद उन्होंने सोनम को लडकियों की क्रिकेट टीम का कोच बनने के लिए प्रोत्साहित किया और कुछ समय बाद सोनम लडकियों की क्रिकेट टीम की कोच बन गई. इस तरह सोनम ने अपने हौसलों की उड़ान को कभी नाकामियाब नहीं होने दिया और साथ ही इस वाक्य को सही साबित कर दिया.
कि जिस तरह सोनम ने अपने हौसलों को कभी कम नहीं होने दिया एवं कोशिश करते हुए हर मुश्किलों का सामना कर आगे बढ़ती रही और कमियाबी की उड़ान भरी. उसी तरह हमें भी कभी हार नहीं माननी चाहिए हमेशा कोशिश करते रहना चाहिए, क्यूकि हौसलों की उड़ान कभी नाकामियाब नहीं होती. कोशिश करते रहने से एक ना एक दिन हमें कमियाबी जरुर हासिल होती है. इस कहानी से उन लोगों को भी शिक्षा मिलती है जो सोनम के पिता कि तरह यह सोचते है कि लडकियाँ कुछ नहीं कर सकती और ऐसे खेल लड़कियों के लिए नहीं बने हैं.
वहां कथावाचक के एक-एक शब्द को मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे रिंकू का नया जन्म हो चुका था. कुछ समय पहले तक जिस रिंकू की आँखों से निराशा के भाव झलक रहे थे, अब उसकी आँखों में चमक थी. उसके शरीर में उत्साह और स्फूर्ति का संचार होने लगा था. कथा ख़त्म होने के साथ ही वह तेजी से घर की ओर चल पड़ा. उसे सफलता का मूलमंत्र मिल चुका था. वह मन ही मन सोच रहा था कि जब हनुमान जी ने अपने विश्वास से शक्ति अर्जित कर समुद्र को लांघ लिया था, तो पढाई कौन सी बड़ी बाधा है. उसी दिन से रिंकू ने प्रण कर लिया कि वह ध्यान लगा कर खूब पढ़ेगा और सफलता अवश्य प्राप्त करेगा. उसकी मेहनत रंग लाई. अपनी कक्षा में सबसे फिसड्डी रहने वाला छात्र रिंकू दसवीं की बोर्ड परीक्षा में सबसे अव्वल आया. इसके बाद रिंकू ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और जिंदगी में हमेशा अव्वल ही आता रहा. वह लोक सेवा की परीक्षा में भी प्रथम स्थान पर आया और अपने आप पर विश्वास की बदौलत वह सरकारी महकमे में भी पदोन्नति पाते हुए ऊँचे ओहदे तक पहुंच गया.....।

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