खाने से बच्चे की हो जाएगी दोस्तीहर रोज.

डॉक्टरों का कहना है कि बच्चे को 6 महीने तक मां का दूध ही पिलाना चाहिए क्योंकि यह बच्चे को सभी बीमारियों से बचाता है अपने खाने में स्वाद को ज्यादा महत्व देते हैं। इसीलिए उसमें सेहत का संतुलन बना रहे, इसका जिम्मा आपका है। बच्चों की खानपान की आदतों को सेहतमंद बनाने के लिए कुछ प्रयास आपको भी करने होंगे, बता रही हैं प्रतिमा पांडेय
इसमें कोई शक नहीं कि हर मां के लिए अपने बच्चे को खाना खिलाना एक दिमागी कसरत की तरह होता है। किसी बच्चे को उसके खाने में आने वाले सब्जियों के लच्छे पसंद नहीं होते, तो किसी बच्चे को मसाले पसंद नहीं आते। कोई सिर्फ चावल ही पसंद करता है, तो कोई सिर्फ दही पर ही गुजारा करने को आमादा मिलेगा। अपने बढ़ते बच्चे की थाली में आहार का जो संतुलन आप देखना चाहती हैं, वह अगर उन पर छोड़ जाए, तो कतई साकार नहीं हो सकता। ऐसे में खाना-खिलाना प्यार कम, डांट-डपट ज्यादा हो जाता है। लेकिन डांट या चिंता से कुछ नहीं होने वाला। पौष्टिक और संतुलित भोजन की कमी से बच्‍चों के शरीर में खून की कमी हो जाती है। कैल्शियम का आभाव होता है। धीरे-धीरे बच्‍चों में खाना पचाने की दिक्‍कत भी होने लगती है। उनकी आंखों की रोशनी पर भी कम पोषण मिलने का बुरा असर पड़ता है। लिए कुछ अलग तरह से कोशिश करनी होगी।  कि बच्चों में खाने को लेकर स्वस्थ नजरिया बनाने के लिए उन्हें कहानियों या कविताओं के माध्यम से हेल्दी खाने के महत्व के बारे में बताएं। उसे एक बार में सब कुछ खिलाना मुश्किल होगा, इसलिए कुछ अंतराल पर खिलाएं। इसमें एक क्रम जरूर बनाएं। जैसे कि दिन भर में तीन बार भोजन, तो तीन बार स्नैक्स आदि जैसा छोटा-मोटा आहार। इससे एक अनुशासन भी बना रहेगा और उसकी पोषण संबंधी आवश्यकता भी पूरी होती रहेगी। अच्छा यही होगा कि जब माता-पिता खाना खाएं, तो बच्चे को साथ खिलाएं। रोटी से ज्यादा उनमें सब्जियों के प्रति रुचि बनाएं। इसके लिए आपको चुकंदर-पालक या गोभी परांठे जैसे प्रयोग भी करने पड़ें, तो करिए। क्योंकि बच्चे को खाना खिलाने का उद्देश्य उसे मोटा करने से ज्यादा स्वस्थ और सक्रिय बनाए रखना होना चाहिए। हां, उनमें खाने के साथ पानी पीने की आदत बिल्कुल न पनपने दें।बच्‍चों में परिवार के बड़े सदस्‍यों के साथ खाना खाने की आदत डा़लें। इससे वे खाने में ना-नुकर कम करेंगे और हर तरह का खाना खाने की आदत भी उनके अंदर आएगी। अगर आपके बच्‍चे का फल पसंद नहीं हैं, तो उसे मिक्‍स फ्रूट चाट बना कर दें। कोल्‍डड्रिंक की बजाय नारियल पानी या फलों का जूस पीने को दें।
कुछ आपके लिए  खाना खिलाएं प्यार से: बच्चों से हर वक्त प्यार से बात करना कठिन काम है। लेकिन जब वे खाना खा  रहे हों, कम से कम तब तो अपने गुस्से पर काबू रखा ही जा सकता है। जब वे खाना खा रहे हों, तो उन्हें कोई झिड़की या डांट न मिले। वरना खाने का असर नकारात्मक ही होगा।प्यार या शाबाशी का विकल्प खाना नहीं: बहुत से अभिभावक अपने मन का काम करवाने के लिए बच्चों को उनकी मनपसंद खाने की चीजों की प्रेरणा देते हैं। लेकिन यह प्रेरणा उसे लालची न बना दे। वैसे भी आपके प्यार का विकल्प खाने की चीजें नहीं हो सकतीं। बच्चे को प्यार से गोद में लेना जितने लंबे समय तक उसके लिए उत्साह और प्रेरणा का काम करेगा, आपकी बनाई स्वादिष्ट डिश नहीं कर सकती। आपका प्यार पाकर वह मानसिक रूप से मजबूत होगा, न कि डिश खाकर। हां, अगर ट्रीट देना ही है, तो हफ्ते में कुछ दिन इसके लिए निर्धारित कर लें। ताकि कम से कम उसका भी एक नियम बच्चे के जहन में रहे और उस मामले में भी अति न होने पाए।
उसके खाने पर आपकी नजर: आपका बच्चे ने बाहर क्या खाया, दिन भर में पानी कितना पिया और कितने कोल्ड ड्रिंक पिए, आदि पर नजर होगी, तो आप उनका खानपान बेहतर संभाल पाएंगी।
कंट्रोल खुद पर भी: यदि आपको बच्चों में अच्छी आदतें डालनी हैं, तो खुद भी उनका अनुसरण करना होगा। जैसे कि सुबह नाश्ता जरूर करना, दिन में एक फल तो जरूर खाना, दिन में कभी थोड़े से मेवे खाना आदि। जब आप यह सब अपने लिए निकालें, तो उसे भी दें। आपकी देखादेखी उसमें वह हेल्दी आदत के तौर पर पनप जाएगा।
कुछ बच्चों को सिखाएं
खाने की सार्थकता: खाना हम क्यों खाते हैं, इसका जवाब कोई रॉकेट साइंस नहीं है। लेकिन बच्चों को यह बात समझाना कठिन है। फिर भी खाने के सेहत संबंधी पहलू पर उनसे अलग-अलग तरीके से बात जरूर करें। उन्हें कैल्शियम, प्रोटीन, विटामिन जैसे कॉन्सेप्ट से परिचित कराएं। इससे उनमें सेहतमंद आहार के प्रति एक रुझान बनेगा।
एक वक्त निर्धारित करें: बच्चे एक अनगढ़ मूरत की तरह होते हैं। उन्हें एक दिशा देना उनके विकास की एक आवश्यकता होती है। थोड़ा अनुशासन भी जरूरी है। यह बात उनके खानपान पर भी लागू होती है। भोजन के मामले में ‘कैसा’ के अलावा ‘कब’ और ‘कितना’ जैसे प्रश्नों को भी उनके लिए निर्धारित करें। दिन में कितनी बार उन्हें खाना खाना है और कितनी बार स्नैक्स, इन सबका समय निर्धारित होगा, तो आपको ही नहीं, उन्हें भी आसानी होगी।
खाने का सलीका: निश्चित रूप से आप अपने बच्चे के चम्मच, कांटे पर नजर रखती होंगी। उसे चबाकर खाने को कहती ही होंगी। लेकिन खाने के सलीके में सिर्फ इतना ही नहीं आता। उन्हें डाइनिंग टेबल पर ही खाना है, टीवी देखते हुए नहीं खाना है, सबके साथ खाना खाना है आदि बातें उनके भोजन संबंधी नजरिए को स्वस्थ बनाए रखो....।

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