हम रोजाना सुनते हैं कि क्या नहीं सकती है जबकि असलियत में यह बात सही नहीं है ज्ञान तो महज जानकारी का नाम है ज्ञान में शक्ति बनने की क्षमता है और यह भी सकती बनाता है जब इसका इस्तेमाल किया जाता है उन दो लोगों में क्या फर्क है जिनमें से एक तो पड़ता जानता है नहीं और दूसरा पढ़ना तो जानता है लेकिन पड़ता नहीं फर्क बहुत ज्यादा ही है सीखना तो खाना खाने की तरह है इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितना खाते हैं फर्क तो इस बात से पड़ता है कि आप उसमें से कितना बचा सकते ई जानकारी छिपी हुई सकती है तो बुद्धिमता सच्ची सकती है।
शिक्षा के कई रुप होते हैं यह सिर्फ गेट या डिग्री के बाद नहीं है बल्कि यह हैः
1. शक्ति को बढ़ाना.
2. आत्म अनुशासन सीखना.
3. सुन ना समझना.
4. सीखने की इच्छा होना.
हमारा दिमाग हमारे मसल्स की तरह उतना ज्यादा या कम सिकुड़ता आया फैलता है जितना हम उससे व्यायाम करवाते हैं.
अगर आप सोचते हैं कि ज्ञान पाना मांगा है तो अज्ञानी बनकर देखो . -डेरेक बाँक
लगातार अच्छी शिक्षा से अच्छी सोच को बढ़ावा मिलता है.।
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