जीतने वाली बात पैदा करने के लिए हमें क्षेष्ट(excellence) हासिल करने की कोशिश करनी चाहिए, न कि परिपूणता हासिल करने की। पूणता प्राप्त करने की कोशिश करना पागलपन है,क्षेष्ठ होने की कोशिश करना तरककी हैं, कयोंकि कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे सुधार और बेहतर न बनाया जा सकें। हमसे बस जरा-सी जितने वाली बात होनी चाहिए। दौड़ में जीतने वाला घोड़ा पाँच या दस गुणा बडा़ इनाम पाता है कया आप सोचते हैं कि यह घोडा दूसरे घोड़ो से पाँच या दस गुणा ज्यादा तेज दौड़ता है?बिल्कुल नहीं।यह घोड़ा बहुत मामूली से ़फ़रक से जीतता है लेकिन इनाम उसे पाँच या दस गूणा ज्यादा मिलता है।
कया ऐसा होना चाहिए? कया यह सही है? कया .फरक पड़ता है।इससे कोई.फरक नहीं पड़ता, ये तो खेल के नियम हैं। खेल तो इसी तरह खेला जाता है। यही उसूल हमारे जीवन पर भी लागू होता है।सफल व्यक्तित असफल लोगों से दश गुना ज्यादा .काबिल नहीं होते।
बस,इनकी बात ही कुछ और है जो उन्हें दश गुना बड़ा इनाम दिलाती है। हमें किसी एक क्षेत्र में1000प्रतिशत सुधार की ज़रूरत नहीं ह़ै,हमें केवल हज़ार क्षेत्रों में 1 प्रतिशत सुधार की जरूरत है। जोकि बहुत आसान है। यही जीतने वाली बात है।
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