ज़िंदगी चुनाव और समझौतों से भरी है

ये दोनों बातें एक-दूसरे का विरोध करती हैं। यदि ज़ि़ंंदगी चुनावों से भरी है तो समझौते का सवाल ही कहाँ उठता है? याद रखिए,समझौता भी एक चुनाव है। आइए इस पर सोचें।

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